सड़क मार्ग पर गाड़ियां या बाजार ?
भोपाल : सड़कों पर आए दिन घटने वाले रोष घटनाओं को रोड रेज़ कहते हैं। सड़क परिवहन भारत में परिवहन का दूसरा महत्वपूर्ण साधन है, जिसे रेलवे परिवहन भी कवर नहीं कर सकता उसे सड़क परिवहन हर कोने को कवर करता है। भारतीय सड़कें देश के 85 प्रतिशत यात्रियों और 70 प्रतिशत माल यातायात को ले जाती हैं।
पर भारत में गरीबी हो, लाचारी हो, धरना हो या कोई प्रदर्शन आखिर सब रोड पर ही क्यों आ जाते हैं। सड़को पर कई बार जाम की वजह से कितने लोग दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं, जाम की वजह से एम्बुलेंस हो या कोई तत्काल सेवा समय पर मरीजों को नही मिल पाती, जिसके कारण कभी कभी उनकी मृत्यु भी हो जाती है। ऐसे में कुछ सवाल भी उठते है जो इस प्रकार हैं।
- ट्रैफिक के नियमों का पालन क्यों नही होता है ?
- क्यों ट्रैफिक तोड़ने वालो से जुर्माना लेकर उन्हें बिना कोई सजा दिए छोड़ दिया जाता है ?
- आखिर क्यों उस सड़क पर पर बाजार लगाया जाता है जहां पहले से ही रास्ते खराब और संकरे होते हैं ?
क्या सड़कों को कभी सांस लेने की छूट मिल सकती है ?
हां ज़रूर मिल सकती है, पर उसके लिए हमें खुद से शुरुवात करनी पड़ेगी, हमे सबको यह समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि अगर वो मार्ग पर ठेला या दुकान खोल रहें हैं, तो वो जाने अंजाने में कई लोग लोगों की मौत का कारण बनते हैं। हमे सबसे अपील करना चाहिए की सड़क के किनारे गाड़ी न पार्क करें, सड़क के किनारे शौच न करे, सड़क मार्ग पर कचरा न फेंके,
अगर मार्ग पर ट्रैफिक व्यवस्था सही नही हुई तो क्या होगा ?
अगर मार्ग पर ट्रैफिक व्यवस्था सही नहीं हुई बाजार लगना बंद नही हुए, सड़को के गड्ढे नहीं सही किए गए तो हमे कहीं जाने के लिए रास्ता सुरक्षित नहीं रहेगा, कार और मोटर साइकिल तो छोड़ो पैदल तक चलने की जगह नहीं रहेगी। हम कहीं पर समय से नही पहुंच पाएंगे, इससे हमारे कार्य में देरी हो सकती है हमारे परिवार को मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।
हमारा लेखन तो यहां पर खत्म हो रहा है, पर आप सब से अपील है है की सुरक्षित मार्ग बनाने के लिए एक छोटी सी कोशिश जरूर करें
बेबस मार्ग की दास्तां
हम तो रास्ते हैं.......
जो आपको अपनी मंजिल तक पहुंचाते हैं,
हम चल नहीं सकते...... हमारे हाथ पैर नहीं है....
वरना मैं भी खुदको इंसानों जैसे साफ सुथरा रखती,
कृपया हमें भी साफ़ रखें......
आखिर हम भी तो आपका रास्ता आसान बनातें हैं,
इंसान ही हमारा हाथ पैर हैं........
हमारे गड्ढे हमारे ज़ख्म हैं.....
हे इंसान... मेरे जख्मों को भरो।
मैं चीखती हूं चिल्लाती हूं उस धूप में....
जिस धूप में तुम छांव ढूढते हो।
मैं कांपती हूं उस सर्दी में.....
जब कोहरे मुझे चादर की तरह ढंक लेते हैं।
मै सड़क हूं... मैं बोल नही सकती...
पर तुम तो इंसान हो ना.... क्या तुम बिना मेरे बोले
मेरी भावनाओं को मेरे दुख को समझ सकते हो...
हे इंसान मुझे भी सांस लेने दो...
हे इंसान मुझे भी सांस लेने दो ✍️
पूजा यादव द्वारा लिखित
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